Thursday, December 27, 2012
Friday, December 21, 2012
Wednesday, December 19, 2012
त्यौहार
.....
....... ......
मैं गरीब भी सँभालता
एक ख़ास वसन को
जो बहुत भाता मन को
हम मिले थे
संग चले थे
कुछ देर
कुछ दूर
जिसे पहनकर
किसी दिवस
किसी बरस
आज साथ नहीं हो
इस बरस
अब साथ नहीं होगी
किसी बरस
मैं पहनता हूँ
उस दिवस
हर बरस
उसी वस्त्र को
और महसूसता हूँ
तुम्हारी ऊष्मा
तुम्हारी गन्ध
तुम्हारा स्पर्श
जो दिया था तुमने
मेरे वसन को
मेरे तन को
मेरे मन को
और हो जाता है वह दिन
एक पर्व पवित्र –सा
फिर रख देता सँभालकर
उस वस्त्र को
अगले त्यौहार के लिए
सच
तेरे प्यार के लिए
.........
...... क्रमशः ....
प्रस्तुत पद्य - खंड मेरी प्रकाशाधीन पुस्तक ----'' स्पर्श ''------( प्रेम को समर्पित : एक प्रयास ) ..की एक लम्बी कविता से उद्धृत है ..... पूरी कविता पुस्तक में लेकर आऊँगा ..
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Monday, December 10, 2012
प्रेम : एक पारलौकिक सुख
....
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सबको प्रेम क्यों नहीं मिलता
भरपूर
प्रचुर
क्या ईश्वर ने अत्यल्प रचा
क्या नहीं था कोई विकल्प बचा
क्या कृपण थे ईश्वर दयावान
जो अपने लोक के लिए रखा संचित
यह अमृत
और हमें दिया
एक अमृत-वाक्य -----
“ प्रेम एक पारलौकिक सुख है ”
हम मानव ढूँढते हैं
एक सुख परलोक का
इहलोक में
ग़लती किसकी है
ईश्वर की
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प्रस्तुत पद्य - खंड मेरी प्रकाशाधीन पुस्तक ----'' स्पर्श ''------( प्रेम को समर्पित : एक प्रयास ) ..की एक लम्बी कविता से उद्धृत है ..... पूरी कविता पुस्तक में लेकर आऊँगा ...
09-12-2012 on Facebook
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रिश्ता धड़कन का प्यार से
.......
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प्रथम स्पर्श प्रियवर का
है उपहार कोई ईश्वर का
विभूषा से अलंकृत बदन
नव पायल से झंकृत आँगन
आती जब वो कक्ष शयन
सितारों से चलकर दुल्हन
होती सम्मुख मुख धवल
न्यौतती जब स्पर्श नवल
फिर
न पूछिए धड़कनों का कम्पन
लगतीं साँसें ज्यों अंगार से
एक अजीब-सा है रिश्ता
धड़कन का प्यार से
------
विभूषा से अलंकृत बदन
नव पायल से झंकृत आँगन
आती जब वो कक्ष शयन
सितारों से चलकर दुल्हन
होती सम्मुख मुख धवल
न्यौतती जब स्पर्श नवल
फिर
न पूछिए धड़कनों का कम्पन
लगतीं साँसें ज्यों अंगार से
एक अजीब-सा है रिश्ता
धड़कन का प्यार से
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------ क्रमशः -------
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प्रस्तुत पद्य - खंड मेरी प्रकाशाधीन पुस्तक ----'' स्पर्श
''------( प्रेम
को समर्पित : एक प्रयास ) ..की एक लम्बी कविता से उद्धृत है ..... पूरी कविता
पुस्तक में लेकर आऊँगा ...
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08-12-2012 on Facebook.
Sunday, December 9, 2012
आकृति
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सोचता हूँ कभी–कभी
मूँदकर आँखें अपनी
अगर तुम्हें नहीं देख पाता
नहीं देख पाता रूप तेरा
तप–भंजक सौन्दर्य तेरा
तो क्या फिर भी प्यार होता
बिन देखे , अनदेखे चेहरे से
सिर्फ क़रीब आने मात्र से
?
........
....................क्रमशः .....
अगर तुम्हें नहीं देख पाता
नहीं देख पाता रूप तेरा
तप–भंजक सौन्दर्य तेरा
तो क्या फिर भी प्यार होता
बिन देखे , अनदेखे चेहरे से
सिर्फ क़रीब आने मात्र से
?
........
....................क्रमशः
प्रस्तुत पद्य - खंड मेरी प्रकाशाधीन पुस्तक ----'' स्पर्श
''------( प्रेम
को समर्पित : एक प्रयास ) ..की एक लम्बी कविता से उद्धृत है ..... पूरी कविता
पुस्तक में लेकर आऊँगा ----
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07-12-2012 on Facebook
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दिल की धड़कन
………
………
यक़ीनन
तुम हँसी नहीं उड़ाते कभी
जो आये होते कभी
स्नेह के आँगन में
नेह के मधुवन में
कृष्ण के वृन्दावन में
और सुन पाते किसी की धुन
मेरे दिल की धड़कन में .
तुम हँसी नहीं उड़ाते कभी
जो आये होते कभी
स्नेह के आँगन में
नेह के मधुवन में
कृष्ण के वृन्दावन में
और सुन पाते किसी की धुन
मेरे दिल की धड़कन में .
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प्रस्तुत पद्य - खंड मेरी प्रकाशाधीन पुस्तक ----'' स्पर्श
''------( प्रेम
को समर्पित : एक प्रयास ) ..की एक लम्बी कविता से उद्धृत है ..... पूरी कविता
पुस्तक में लेकर आऊँगा ..
December 6 , 2012 0n Facebook
अदृश्य-रेखा
ज़िन्दगी में
तुम से दूर रहते-रहते
दूर रहने की आदत-सी पड़ गई
अब तो ख़्वाबों में भी दूर-दूर ही रहता
तेरे पास आने से घबराता
शायद मेरे सपने
घिरे हुए हैं
उन अदृश्य रेखाओं से
हमने जो खींची थीं कभी
जिन्हें पार करने का साहस नहीं कर पाता
शायद मैं कमज़ोर हूँ
या ये रेखाएँ मुझसे मज़बूत
पर तुम इतने कमज़ोर नहीं
तुम तो शक्ति की अधिष्टात्री हो
इतनी शक्ति है तेरे पास
कि रच सकती हो मानव को
रच देती हो मानव को
थोड़ा साहस थोड़ी ऊर्जा
दिखाओ तुम इन रेखाओं के सम्मुख ..
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प्रस्तुत पद्य - खंड मेरी प्रकाशाधीन पुस्तक ----'' स्पर्श
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पुस्तक में लेकर आऊँगा......
December 6, 2012 at 5:57pm on Facebook
एक ज़िन्दगी में कई ज़िन्दगियाँ
क्यों विस्मित हो ऐसे
जानकर
कि सचमुच कोई जी सकता है
एक ज़िंदगी में कई ज़िन्दगियाँ
शायद तुम्हें किसी से
सिर्फ़ परिचय हुआ
पहचान हुई
और हुआ भ्रम
प्यार का
मगर किसी से प्यार नहीं हुआ
या इतना प्यार नहीं हुआ
कि
सुन पाते
एक सुर में सरगम
जी पाते
एक पल में ज़िन्दगी
एक ज़िन्दगी में कई ज़िन्दगियाँ .
और हुआ भ्रम
प्यार का
मगर किसी से प्यार नहीं हुआ
या इतना प्यार नहीं हुआ
कि
सुन पाते
एक सुर में सरगम
जी पाते
एक पल में ज़िन्दगी
एक ज़िन्दगी में कई ज़िन्दगियाँ .
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प्रस्तुत पद्य - खंड मेरी प्रकाशाधीन पुस्तक ----'' स्पर्श
''------( प्रेम
को समर्पित : एक प्रयास ) ..की एक लम्बी कविता से उद्धृत है ..... पूरी कविता
पुस्तक में लेकर आऊँगा..
06.12.2012
06.12.2012
एक शब्द
एक शब्द
सटीक की तलाश में
अनुभूति के विन्यास में
भटकता सा रहता
ख़ामोशी से कहता
कहाँ छुपे हो
कहाँ सोये हो
किस पृष्ठ पर
कहाँ खोये हो
तुझे ढूँढने की ज़िद में
न जाने मैंने
क्या-क्या न पढ़ डाला
नये शब्दों को गढ़ डाला
..
..
हे प्रियवर !
तू ही कुछ कर
भटक रहा शब्दों के वन में
खोया रहता मैं उलझन में
बीच हमारे आख़िर क्या है
तेरे पास वह शब्द पड़ा है
सरल
निश्छल
कोमल
निर्मल.........
ठहरो !
तनिक ठहरो
दो साँसों को विश्राम
मत ढूँढों कोई नाम
इस तरह न वर्णित करो
सीमा में न सीमित करो
इस निर्झर को बहने दो
हृदय को जीभर कहने दो
अधरों को बंद ही रहने दो
एहसास है ये
अभिव्यक्ति नहीं
शब्दों में वह
शक्ति नहीं
अच्छा है
निःशब्द रहे
एक शब्द
हाँ
एक शब्द !
कहाँ छुपे हो
कहाँ सोये हो
किस पृष्ठ पर
कहाँ खोये हो
तुझे ढूँढने की ज़िद में
न जाने मैंने
क्या-क्या न पढ़ डाला
नये शब्दों को गढ़ डाला
..
..
हे प्रियवर !
तू ही कुछ कर
भटक रहा शब्दों के वन में
खोया रहता मैं उलझन में
बीच हमारे आख़िर क्या है
तेरे पास वह शब्द पड़ा है
सरल
निश्छल
कोमल
निर्मल.........
ठहरो !
तनिक ठहरो
दो साँसों को विश्राम
मत ढूँढों कोई नाम
इस तरह न वर्णित करो
सीमा में न सीमित करो
इस निर्झर को बहने दो
हृदय को जीभर कहने दो
अधरों को बंद ही रहने दो
एहसास है ये
अभिव्यक्ति नहीं
शब्दों में वह
शक्ति नहीं
अच्छा है
निःशब्द रहे
एक शब्द
हाँ
एक शब्द !
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प्रस्तुत पद्य - खंड मेरी प्रकाशाधीन पुस्तक ----'' स्पर्श
''------( प्रेम
को समर्पित : एक प्रयास ) ..की एक लम्बी कविता से उद्धृत है ..... पूरी कविता
पुस्तक में लेकर आऊँगा
05.12.2012. on Facebook
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सौन्दर्य का अंतिम पड़ाव
सौन्दर्य का अंतिम पड़ाव लेकर
किसी पहाड़ी नदी का
चंचल, उन्मत्त-सा बहाव लेकर
वो आ बैठे
क़रीब मेरे
जीवन में एक ठहराव लेकर
किसी पहाड़ी नदी का
चंचल, उन्मत्त-सा बहाव लेकर
वो आ बैठे
क़रीब मेरे
जीवन में एक ठहराव लेकर
सौन्दर्य का अंतिम............
अंग उनका .... उफ़
सोम तले सौम्य-सा
ढंग उनका .... उफ़
दृश्य कोई रम्य-सा
संग उनका .... उफ़
शत अपराध क्षम्य-सा
वो आ बैठे
अप्रतिम-सा कोई झुकाव लेकर
सौन्दर्य का अंतिम................
अंग उनका .... उफ़
सोम तले सौम्य-सा
ढंग उनका .... उफ़
दृश्य कोई रम्य-सा
संग उनका .... उफ़
शत अपराध क्षम्य-सा
वो आ बैठे
अप्रतिम-सा कोई झुकाव लेकर
सौन्दर्य का अंतिम................
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प्रस्तुत पद्य - खंड मेरी प्रकाशाधीन पुस्तक ----'' स्पर्श
''------( प्रेम
को समर्पित : एक प्रयास ) ..की एक लम्बी कविता से उद्धृत है ..... पूरी कविता
पुस्तक में लेकर आऊँगा
04.12.2012. Monday, November 19, 2012
Sunday, August 26, 2012
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