Friday, January 16, 2015

=सौन्दर्य का अंतिम पड़ाव =’कटघरा ’ जून 13 मे प्रकाशित


 

 === सौन्दर्य का अंतिम पड़ाव ===
'कटघरा ’ पत्रिका के जून 13 अंक मे प्रकाशित
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सौन्दर्य का अंतिम पड़ाव लेकर
किसी पहाड़ी नदी का
चंचल, उन्मत्त-सा बहाव लेकर
वो आ बैठे
करीब मेरे
जीवन में एक ठहराव लेकर
सौन्दर्य का अंतिम............


अंग उनका .... उफ़
सोम तले सौम्य-सा
ढंग उनका .... उफ़
दृश्य कोई रम्य-सा
संग उनका .... उफ़
शत अपराध क्षम्य-सा
वो आ बैठे
अप्रतिम-सा कोई झुकाव लेकर
सौन्दर्य का अंतिम................

उठती ...गिरती .....ठहरती
साँसों में संगीत लिये
चुप ... मौन ... नीरव
अधरों में गीत लिये
चंचल ... तेज़ .....तीव्र
आँखों में प्रीत लिये
वो आ बैठे
अनुद्‍भुत संसार का जमाव लेकर
सौन्दर्य का अंतिम...................

सौन्दर्य ... अनिन्‍द्य
किसी चित्रकार का चित्र कोई
निर्मलता ... वर्णनातीत
धारा गंगा की पवित्र कोई
तरुणाई ... शब्दातीत
तप तोड़ ले विश्वामित्र कोई
हतप्रभ था मैं
वो आ बैठे
जन्मों का विस्मृत कोई लगाव लेकर
सौन्दर्य का अंतिम........................

चेहरा था अनजाना-सा
पर लगता था पहचाना-सा
कभी ख़ुद पर प्यार आता था
तो कभी तक़दीर पर
यूँ लगा क़िस्मत आयी हो जैसे
एक मौन-सा कोई सुझाव लेकर
सौन्दर्य का अंतिम.................

एक नदी में बह रहा था मैं
कभी तिनकों से
कभी दरख़्तों से
लिपट रहा था मैं
सिमट रहा था मैं
और बह रहा था मैं
और बह रहा था मैं
तन कर रहा था बचने की कोशिश
मन में बहने का भाव लेकर
सौन्दर्य का अंतिम............

इस उलझन इस कशमकश में
कुछ नहीं रहा जो वश में
झूझता रहा कभी गह्वर से
चोट खाता कभी लहर से
क्या-क्या न सहता रहा
बदहवास-सा बहता रहा
ज़माने से एक अलगाव लेकर
सौन्दर्य का अंतिम..............

मगर
प्रारब्ध ....विपरीत-सा
क्षण .... व्यतीत-सा
स्वप्न .... अतीत-सा
लौट आया अतल भँवर से
हारकर मैं विजित समर से
इस प्रवाह मे जाने कहाँ-कहाँ टकराया मैं
शेष ज़ख्म भर जाये शायद
वक़्त कुछ कर जाये शायद
लगती है
ज़िन्दगी अब मज़बूरी-सी
साँसें अब अधूरी–सी
बता प्रिये !
कब तक जिये आख़िर कोई
जीवन में साँसों का अभाव लेकर

वो आये ज़िन्दगी में मेरे
सौन्दर्य का अंतिम पड़ाव लेकर .
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