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सोचता हूँ कभी–कभी
मूँदकर आँखें अपनी
अगर तुम्हें नहीं देख पाता
नहीं देख पाता रूप तेरा
तप–भंजक सौन्दर्य तेरा
तो क्या फिर भी प्यार होता
बिन देखे , अनदेखे चेहरे से
सिर्फ क़रीब आने मात्र से
?
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....................क्रमशः .....
प्रस्तुत पद्य - खंड मेरी प्रकाशाधीन पुस्तक ----'' स्पर्श
''------( प्रेम
को समर्पित : एक प्रयास ) ..की एक लम्बी कविता से उद्धृत है ..... पूरी कविता
पुस्तक में लेकर आऊँगा ----
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07-12-2012 on Facebook
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