Sunday, December 9, 2012

एक शब्द








एक शब्द 

सटीक की तलाश में


अनुभूति के विन्यास में


भटकता सा रहता


ख़ामोशी से कहता

कहाँ छुपे हो


कहाँ सोये हो


किस पृष्ठ पर
 

कहाँ खोये हो
 

तुझे ढूँढने की ज़िद में 

न जाने मैंने
 

क्या-क्या न पढ़ डाला

 नये शब्दों को गढ़ डाला

..
..


हे प्रियवर !


तू ही कुछ कर


भटक रहा शब्दों के वन में


खोया रहता मैं उलझन में


बीच हमारे आख़िर क्या है


तेरे पास वह शब्द पड़ा है


सरल
निश्छल


कोमल


निर्मल.........


ठहरो !


तनिक ठहरो


दो साँसों को विश्राम


मत ढूँढों कोई नाम


इस तरह न वर्णित करो


सीमा में न सीमित करो


इस निर्झर को बहने दो


हृदय को जीभर कहने दो


अधरों को बंद ही रहने दो

 
एहसास है ये 


अभिव्यक्ति नहीं 


शब्दों में वह


शक्ति नहीं


अच्छा है


निःशब्द रहे 


एक शब्द


हाँ


एक शब्द ! 
.

प्रस्तुत पद्य - खंड मेरी प्रकाशाधीन पुस्तक ----'' स्पर्श ''------( प्रेम को समर्पित : एक प्रयास ) ..की एक लम्बी कविता से उद्धृत है ..... पूरी कविता पुस्तक में लेकर आऊँगा
05.12.2012. on Facebook

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