एक शब्द
सटीक की तलाश में
अनुभूति के विन्यास में
भटकता सा रहता
ख़ामोशी से कहता
कहाँ छुपे हो
कहाँ सोये हो
किस पृष्ठ पर
कहाँ खोये हो
तुझे ढूँढने की ज़िद में
न जाने मैंने
क्या-क्या न पढ़ डाला
नये शब्दों को गढ़ डाला
..
..
हे प्रियवर !
तू ही कुछ कर
भटक रहा शब्दों के वन में
खोया रहता मैं उलझन में
बीच हमारे आख़िर क्या है
तेरे पास वह शब्द पड़ा है
सरल
निश्छल
कोमल
निर्मल.........
ठहरो !
तनिक ठहरो
दो साँसों को विश्राम
मत ढूँढों कोई नाम
इस तरह न वर्णित करो
सीमा में न सीमित करो
इस निर्झर को बहने दो
हृदय को जीभर कहने दो
अधरों को बंद ही रहने दो
एहसास है ये
अभिव्यक्ति नहीं
शब्दों में वह
शक्ति नहीं
अच्छा है
निःशब्द रहे
एक शब्द
हाँ
एक शब्द !
कहाँ छुपे हो
कहाँ सोये हो
किस पृष्ठ पर
कहाँ खोये हो
तुझे ढूँढने की ज़िद में
न जाने मैंने
क्या-क्या न पढ़ डाला
नये शब्दों को गढ़ डाला
..
..
हे प्रियवर !
तू ही कुछ कर
भटक रहा शब्दों के वन में
खोया रहता मैं उलझन में
बीच हमारे आख़िर क्या है
तेरे पास वह शब्द पड़ा है
सरल
निश्छल
कोमल
निर्मल.........
ठहरो !
तनिक ठहरो
दो साँसों को विश्राम
मत ढूँढों कोई नाम
इस तरह न वर्णित करो
सीमा में न सीमित करो
इस निर्झर को बहने दो
हृदय को जीभर कहने दो
अधरों को बंद ही रहने दो
एहसास है ये
अभिव्यक्ति नहीं
शब्दों में वह
शक्ति नहीं
अच्छा है
निःशब्द रहे
एक शब्द
हाँ
एक शब्द !
.
No comments:
Post a Comment