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सबको प्रेम क्यों नहीं मिलता
भरपूर
प्रचुर
क्या ईश्वर ने अत्यल्प रचा
क्या नहीं था कोई विकल्प बचा
क्या कृपण थे ईश्वर दयावान
जो अपने लोक के लिए रखा संचित
यह अमृत
और हमें दिया
एक अमृत-वाक्य -----
“ प्रेम एक पारलौकिक सुख है ”
हम मानव ढूँढते हैं
एक सुख परलोक का
इहलोक में
ग़लती किसकी है
ईश्वर की
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प्रस्तुत पद्य - खंड मेरी प्रकाशाधीन पुस्तक ----'' स्पर्श ''------( प्रेम को समर्पित : एक प्रयास ) ..की एक लम्बी कविता से उद्धृत है ..... पूरी कविता पुस्तक में लेकर आऊँगा ...
09-12-2012 on Facebook
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विभूति जी...बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद कमलेश जी लगता है मेरी भावाभिव्यक्ति सही व्यक्ति तक पहुँच रही है ...
ReplyDeleteअपने और मित्रों तक मेरी कवितायें पहुँचाएँ ...आभार ..